बिहार पशु चिकित्सा महाविद्यालय पटना के असिस्टेंट प्रो.Dr. Manmohan kumarने कहा किबटेर के कम होते संख्या को देखते हुए सरकार ने बटेर पालन के लिए लाइसेंस जारी कर दिया है। अगर आप बटेर पालन करना चाहते हैं तो इसके लिए लाइसेंस लेना अनिवार्य है। इसके लिए आपको बटेरों के रहने की व्यवस्था और उनके चारे की व्यवस्था करनी होगी। यदि आप यह सारी व्यवस्था कर लेते हैं तो आप आराम से बटेर पालन का काम शुरू कर सकते हैं।
बटेर पालन के लिए आवास प्रबंधन
बटेर को ठीक देशी मुर्गे की तरह हीं पाला जा सकता है। ध्यान रहे कि जहां भी बटेरों के रहने की व्यवस्था कर रहे हैं। वहां पर उनके चरने और घूमने की अच्छी जगह हो। इसके साथ ही रोशनी और बिजली की भी उपयुक्त व्यवस्था होनी चाहिए बटेर पालन आप ग्रामीण क्षेत्रों में भी आसानी से कर सकते हैं। ध्यान रहे कि बटेर के आवास के आसपास हरे पेड़ पौधे होताकि उन्हें चरने में आसानी हो।
बटेर के लिए आहार प्रबंधन
जो दाना या चारा आप मुर्गियों के लिए इस्तेमाल करते हैं। वह बटेर को भी दे सकते हैं। एक वयस्क बटेर को प्रतिदिन 25 से 30 ग्राम आहार देना उपयुक्त होता है। बटेर को किसी विशेष आहार की आवश्यकता नहीं होती है। अगर आप कुछ विशेष आहार के रूप में देना चाहते हैं तो प्रशिक्षण केंद्र से या किसी विशेषज्ञ से राय लेकर ही बटेर के आहार में बदलाव करें।
बटेर की उन्नत नस्लें
पूरी दुनिया में लगभग बटेर के 18 नस्लें उपलब्ध हैं। जिसमें सबसे ज्यादा जापानी बटेर बेहतर माना जाता है। हमारे देश में ज्यादातर जापानी बटेर हो का ही पालन किया जाता है।
– मांस उत्पादन के लिए बोलवाइट सबसे बेहतर माना जाता है। यह अमेरिकी नस्ल की बटेर है।
– दूसरी नस्ल व्हाइट बेस्टेड है जो एक भारतीय प्रजाति का ब्रायलर बटेर है। यह नस्ल भी अच्छी मांस के लिए उपयुक्त होती है।
– अगर आप अधिक अंडे देने वाली बटेर की तलाश कर रहे हैं तो ब्रिटिश रेंज, इंग्लिश व्हाइट, मंचूरियन गोलन फिरौन और टक्सेडो का पालन कर सकते हैं। आप अपने उत्पादन उद्देश्य के अनुसार किसी भी नस्ल का चयन कर सकते हैं।
बटेर पालन की विधि
गहरी बिछावन प्रणाली
इस पद्धति में बटेर को फर्श पर पाला जाता है इसमें फर्श पर लकड़ी का बुरादा या धान का छिलका लगभग 2 से 2.5 इंच मोटा बिछाया जाता है फिर बटेर को इस बुरादे पर पाला जाता है। इस पद्धति से बटेर को पहले दिन से बाजार में बेचने तक पाला जा सकता है। 6 बटेर के लिए 1 वर्ग फीट जगह की जरूरत होती है। इससे बटेर का शारीरिक वजन अच्छा मिलता है। क्योंकि पक्षी अनावश्यक रूप से नहीं घूम पाता है।
पिंजड़ा प्रणाली
इस पद्धति में बटेर को विशेष प्रकार से बनाये गए पिंजड़े में पाला जाता है। यह प्रणाली कई प्रकार से फायदेमंद रहती है जैसे कि कम जगह में ज्यादा बटेर पाले जा सकते हैं। इसमें बटेर की बीट पिंजड़े से नीचे गिर जाती हैं, जिसके कारण कई प्रकार के रोगों के होने की आशंका कम रहती है। एक पिंजड़ा 6 फीट लंबा एवं 1 फीट चौड़ा होना चाहिये जो कि 6 यूनिट में विभाजित होना चाहिये। प्रथम दो सप्ताह तक इसका आकार 3×2.5×1.5 फीट होना चहिये जिसमें 100 बटेर पाली जा सकती हैं। 3 से 6 सप्ताह तक पिंजड़े का आकार 4×2.5×1.5 फीट होना चहिये जिसमें 50 बटेर पालन संभव है।
लिंग पहचान
बटेरों में लिंग की पहचान मुर्गी चूजों की तरह एक दिन की आयु पर की जाती है। परंतु तीन सप्ताह की आयु पर पंखों के रंग के आधार पर, जिसमें नर की गर्दन के नीचे के पंखों का रंग लाल, भूरा, धूसर और मादा की गर्दन के नीचे के पंखों का रंग हल्का लाल और काले रंग के धब्बेदार होता है। मादा बटेर के शरीर का भार नर से 15 से 20 प्रतिशत अधिक होता है।
आहार प्रबंधन
बटेर पक्षी के शरीर का आकार बहुत छोटा होने के कारण इसके आहार की मात्रा भी कम देनी पड़ती है। आहार देने के पहले उसको बारीक पीस लेना चाहिये। बटेर के चूजों को अच्छी शारीरिक वृद्धि के लिए संतुलित आहार के साथ ही 6 से 8 प्रतिशत शीरे का घोल 3-4 दिनों तक देना चाहिए और आहार में 0-3 सप्ताह तक 25 प्रतिशत और 4 से 5 सप्ताह में 20 प्रतिशत प्रोटीनयुक्त आहार देना चाहिए। 6 माह की बटेर को प्रतिदिन 30-35 ग्राम आहार की जरूरत होती है। एक बटेर को 12 अंडे के उत्पादन के लिए 400 ग्राम आहार की आवश्यकता होती है।
प्रकाश व्यवस्था
वयस्क बटेर या अंडा देने वाली बटेर के लिए 16 घंटे प्रकाश और 8 घंटे का अंधेरा जरूरी है। बटेर के मांस उत्पादन में वृद्धि करने के लिए और बाजार भेजने से पहले 7-10 दिनों तक 8 घंटे प्रकाश और 16 घंटे अंधेरा रखना जरूरी है।
टीकाकरण
बटेरों में किसी प्रकार का टीकाकरण नहीं करना पड़ता है, क्योंकि इनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है। बटेर के आहार में 5 प्रतिशत सूखा केजीन( फटे दूध का सफेद भाग) मिलाने से कम मृत्युदर और अच्छी शारीरिक वृद्धि होती है। बटेर को औषधि के रूप में मिनरल और विटामिन सप्लीमेंट दिए जाते हैं। बटेर चूजे का बढ़िया प्रबंधन करके बटेर फार्म एरिया का कीटाणु शोधन पीने के लिये साफ पानी और उच्च गुणवत्ता वाला कंसन्ट्रेट दाना खिलाकर रोगों को रोका जा सकता है।
बटेर पालन की मुख्य विशेषताएं
बटेर पक्षी का छोटा आकार (150 से 200 ग्राम शरीर भार) होने के कारण इस व्यवसाय को करने के लिए कम जगह की आवश्यकता होती है। इसका रखरखाव काफी आसान होता है।
यह 5 सप्ताह में ही मांस के लिए तैयार हो जाती है।
बटेर के अंडे और मांस में अमीनो अम्ल, विटामिन, वसा और खनिज लवण की प्रचुर मात्रा होती है।
बटेर में रोग प्रतिरोधक क्षमता होने के कारण इनको किसी भी प्रकार का टीका लगाने की आवश्यकता नहीं होती है। इनमें रोग न के बराबर होते हैं।
मादा बटेर 6 सप्ताह (42 दिन) में अंडा उत्पादन शुरू कर देती है, जबकि कुक्कुटपालन (अंडा उत्पादन करने वाली मुर्गी) में 18 सप्ताह (120 दिनों) के बाद अंडा उत्पादन शुरू होता है।
बटेर को खुले में नहीं पाला जा सकता है। इसका पालन बंद जगह पर किया जाता है क्योंकि यह बहुत तेजी से उड़ने वाला पक्षी है। यह तीन सप्ताह में बाजार में बेचने के योग्य हो जाती है।
अंडा उत्पादन करने वाली एक बटेर एक दिन में 18 से 20 ग्राम दाना खाती है, जबकि मांस उत्पादन करने वाली एक बटेर एक दिन में 25 से 28 ग्राम दाना खाती है।
पहले दो सप्ताह में बटेर पालन में बहुत ध्यान देना होता है जैसे कि 24 घंटे रोशनी, उचित तापमान, बंद कमरा तथा दाना-पानी इत्यादि।
NOTE – इस लेख में उल्लेखित सलाह और सुझाव सिर्फ सामान्य सूचना के उद्देश्य के लिए हैं और इन्हें पेशेवर चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। कोई भी सवाल या परेशानी हो तो हमेशा अपने डॉक्टर से सलाह लें।
सन्नी प्रियदर्शी की रिपोर्ट