डिलिवरी के बाद शिशु का रोना क्यों है  जरूरी ?                    Dr. Binay Ranjan…

Medical Mike Desk: शहर के जाने माने शिशु रोग चिकित्सक डॉक्टर बिनय रंजन ने कहा कि डिलिवरी के बाद शिशु का रोना बेहद जरूरी होता है पर सभी नवजात बच्चे जन्म के समय नही रोते कोइ बच्चा कुच्छ देर बाद रोता हैं, तो कोइ बच्चाजन्म के बाद से देर तक रोते रहता हैपहली बार शिशु का रोना सुनना, हर मां के लिए बहुत ही खुशी का पल होता है क्योंकि डॉक्टर्स के मुताबिक शिशु का रोना ही उसकी सही डिलिवरी का सबूत है। इसलिए इन सभी बातो को जानना हर मां के लिए बहुत जरूरी हैताकि मां बच्चे के हेल्दी नेचर के बारे में जान सकें और उसका ख्याल रख सके।

शिशु का रोना क्यों है जरूरी?

पहली बार शिशु का रोना सुनना, हर मां के लिए बहुत ही खुशी का पल होता है क्योंकि डॉक्टर्स के मुताबिक शिशु का रोना ही उसकी सही डिलिवरी का सबूत है। इसके अलावा यह भी माना जाता है कि बच्चा तंदरुस्त पैदा हुआ है।

पूरे नौ महीने बच्चा, मां की नाल के जरिए ही सांस लेता है। गर्भ में बच्चे के विकास के दौरान फेफड़े ही ऐसा अंग हैं जो सबसे आखिरी में विकसित होते हैं पर जैसे ही बच्चा गर्भ से बाहर आता है उसके फेफड़ों का काम करना बहुत ज्यादा जरूरी हो जाता है। इसलिए जैसे ही वो रोने के लिए जोर लगाता है उसके फेफड़े काम करने लगते हैं और उसको सही मात्रा में ऑक्सीजन मिलने लगती है।

जन्म लेने के बाद क्यों रोते हैं बच्चे?

डिलिवरी के तुरंत बाद शिशु का रोना एक अच्छी स्थिति मानी जाती है। जैसे ही बच्चा गर्भ से बाहर आता है, डॉक्टर्स तुंरत सक्शन ट्यूब (suction tube) द्वारा उसके नाक और मुंह को साफ करते हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि बच्चे की बॉडी के हर हिस्से को सही तरह से ऑक्सीजन मिल सके और उसके सिस्टम सही से काम करने लगे। कभी-कभार यह बच्चा खुद भी करता है जिसकी वजह से वह जोर से रोने लगता है और यही कारण है कि वह आसानी से सांस भी लेने लगता है। यही कारण है कि बच्चा जन्म लेने के बाद रोता है।

जब मां की गर्भ में होता है बच्चा

हम सभी जानते हैं कि बच्चा जब मां के गर्भ में होता है, तब वह सांस नहीं लेता। इस दौरान वह एम्नियोटिक सैक नामक एक थैली में होता है। इस थैली में एम्नियोटिक द्रव भरा होता है। बच्चे के फेफड़ों में इस समय हवा नहीं होती है। ऐसे में फेफड़ों में भी एम्नियोटिक द्रव भरा होता है। इस स्थिति में बच्चे को पूरा पोषण अपनी मां के द्वारा मिलता है।

बच्चे और मां के बीच गर्भनाल होती है जिससे सारा पोषण उस तक पहुंचता है। शिशु को जब मां के गर्भ से बाहर निकाला जाता है तो गर्भनाल काट दी जाती है। इसके तुरंत बाद शिशु को उल्टा लटकाकर उसके फेफड़ों से एम्नियोटिक द्रव को निकाला जाता है। ऐसा करना बहुत जरूरी होता है।

इससे फेफड़ों को सास लेने के लिए तैयार किया जाता है। इस प्रक्रिया के लिए जरूरी है कि बच्चा लंबी-लंबी सांसे लें। लंबी सांसे लेने पर उसके फेफड़ों के हर कोने से एम्नियोटिक द्रव निकल जाएगा और श्वास का मार्ग खुल जाता है और वायु का संचार होने लगता है।

यही कारण है कि रोने की क्रिया बेहद जरूरी होती है। कई बार बच्चा जन्म के बाद नहीं रोता है तो उसकी पीठ पर थप्पड़ लगाकर रुलाया जाता है। डिलिवरी की प्रक्रिया मां और बच्चे दोनों के लिए बहुत मुश्किलों भरी होती है। बच्चे को एक संकरे मार्ग से निकलकर बाहर आना होता है। बाहर जो उसे वातावरण मिलता है वो मां के शरीर के अंदर के वातावरण से काफी अलग होता है। मां के गर्भ में वह खुद को बेहद सुरक्षित पाता है। उस माहौल से निकलकर बाहर की दुनिया देखकर भी शिशु का रोना का कारण हो सकता है। कुल मिलाकर बच्चे के रोने से उसके स्वास्थ्य के बारे में पता चल पाता है।

Note :- इस लेख में उल्लेखित सलाह और सुझाव सिर्फ सामान्य सूचना के उद्देश्य के लिए हैं और इन्हें पेशेवर चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। कोई भी सवाल या परेशानी हो तो हमेशा अपने डॉक्टर से सलाह लें।

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