Narco Test क्या है? जिसमें इंजेक्शन लगाकर ‘खींच’ लेते हैं पूरा सच

Medical Mike Desk : नार्को-एनालाइसिस टेस्ट को ही नार्को टेस्ट कहा जाता है। आपराधिक मामलों की जांच-पड़ताल में इस परीक्षण की मदद ली जाती है। बता दें कि इस टेस्ट की सफलता-वैधता पर हमेशा से सवाल और विवाद उठते रहे हैं और न्यायालय इसको मान्य नहीं मानता है।

नार्को टेस्ट क्या है?

NCBI के अनुसार, नार्को टेस्ट एक डिसेप्शन डिटेक्शन टेस्ट है, जिस कैटेगरी में पॉलीग्राफ और ब्रेन-मैपिंग टेस्ट भी आते हैं। अपराध से जुड़ी सच्चाई और सबूतों को ढूंढने में नार्को परीक्षण काफी मदद कर सकता है। रिपोर्ट मुताबिक, यह टेस्ट व्यक्ति को सम्मोहन की स्थिति में ले जाता है, जहां उसका चेतन मन कमजोर हो जाता है और वह जानकारी देने से पहले सोचने-समझने की स्थिति में नहीं रहता।

नार्को टेस्ट कौन और कैसे करता है?

नार्को टेस्ट करने वाले डॉक्टर ने बताया कि नार्को टेस्ट की टीम में एनेस्थिसियोलॉजिस्ट, साइकोलॉजिस्ट, टेक्नीशियन और मेडिकल स्टाफ होता है। पहले आरोपी की नसों में इंजेक्शन से एनेस्थीसिया ड्रग दिया जाता है और फिर व्यक्ति के हिप्नोटिक स्टेज पर पहुंचने के बाद उससे जरूरी सवाल किए जाते हैं।

नार्को टेस्ट से पहले होता है फिटनेस टेस्ट

नार्को टेस्ट से पहले व्यक्ति का फिटनेस टेस्ट किया जाता है। जिसमें लंग्स टेस्ट, हार्ट टेस्ट जैसे प्री-एनेस्थिसिएटिक टेस्ट होते हैं। वहीं, नार्को टेस्ट के दौरान व्यक्ति की हिप्नोटिक स्टेज को मॉनिटर करने के लिए कुछ डिवाइस का इस्तेमाल किया जाता है।

नार्को टेस्ट में कौन-सी दवा/इंजेक्शन देते हैं?

नार्को टेस्ट के अंदर 3000 ml डिस्टिल्ड वॉटर में मिलाई गई तीन ग्राम सोडियम पेन्टोथेल का इस्तेमाल होता है। इसकी डोज आरोपी/व्यक्ति के वजन पर निर्भर करती है, जो कि सोडियम पेन्टोथेल सॉल्यूशन की 4ml/min की रेट पर हो सकती है। इस सीरम की डोज हर व्यक्ति के लिए अलग हो सकती है और मॉनिटरिंग डॉक्टर असर को देखते हुए डोज कम या ज्यादा कर सकता है।

दवा दिमाग पर कैसे काम करती है?

रिपोर्ट के अनुसार दवाएं व्यक्ति को हिप्नोटिक स्टेज में डाल देती हैं, जिसके कारण वह जानबूझकर कुछ बोल या छिपा नहीं सकता है। ऐसे में आपको सवालों के जवाब मिलने लगते हैं। हालांकि, व्यक्ति लंबे जवाब देने की स्थिति में नहीं होता और वह छोटे-छोटे हिस्सों में जानकारी देता है।

नार्को टेस्ट की सक्सेस रेट कितनी है?

26/11 मुंबई हमला और स्टांप घोटाले की जांच में नार्को टेस्ट ने सच उजागर करने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, लेकिन आरुषि मर्डर केस में इस परीक्षण से कामयाबी नहीं मिल सकी। कमजोर चेतन मन की स्थिति में कल्पनाशक्ति काफी तेज हो जाती है। जिसमें अनजाने में व्यक्ति काल्पनिक जानकारी दे सकता है।

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नार्को टेस्ट के साइड इफेक्ट

नार्को टेस्ट के मनोवैज्ञानिक दुष्प्रभावों के बारे में कहा गया है कि यह टेस्ट व्यक्ति में अधीनता का भाव पैदा करता है। जिससे चिड़चिड़ापन, चिंता जैसी मनोवैज्ञानिक समस्याएं देखने को मिल सकती हैं। एक स्वस्थ व्यक्ति पर नार्को टेस्ट में इस्तेमाल हुई दवा का दुष्प्रभाव होना ना के बराबर है। इसलिए ही नार्को टेस्ट से पहले व्यक्ति का फिटनेस टेस्ट किया जाता है।

नार्को टेस्ट में कितना खर्चा आता है?

नार्को टेस्ट के खर्च पर सभी विशेषज्ञों की राय एक थी कि यह सिर्फ सरकार द्वारा प्रामाणित सरकारी संस्थाओं और विशेषज्ञों की देखरेख में ही किया जाता है, जिसके लिए न्यायालय का अनुमति प्रमाण पत्र अतिआवश्यक है।

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