बाह्य परीजीवीयों से पशुओं में होने वाले रोग एवं बचाव- Dr. Shyma K.P.

Medical Mike Desk: परजीवी विभाग(BASU) Dr. Shyma K.P.ने पशुओं में परजीवी को भयंकर समस्या बताते हुए कहा कि परजीवी जीव दो प्रकार के होते हैं, अंत परजीवी एवं बाहय परजीवी। ये प्राय सभी प्रकार तथा उम्र के पशु को प्रभावित करते हैं, परंतु विशेष रूप से यह गोवंश पशुओं में ज्यादा होते हैं। इसके अतिरिक्त चिंचड़, भेड़, बकरी, सूअर, कुत्ता, बिल्ली आदि में भी पाए जाते हैं।

परजीवी जन्तु( Parasite ) वे जीव कहलाते है जो भोजन तथा आवास के लिए किसी अन्य जीव पर आश्रित होते हैं । जैसे- चिंचड़ जूं, खटमल जोंक, एंटअमीबा, फीताकृमि आदि।

इनके अंतर्गत आने वाले परजीवी मुख्यतः ऑटोबियस, एक्सोडिस, डरमोकैंटर, हिमोफाइलसेलिस इत्यादि है। यह चमड़ी की ऊपरी सतह से शरीर के अंदर अनेक प्रकार की बीमारियां फैलाते हैं और अधिक समय तक रहने पर शरीर से खून चूसते रहते हैं, तथा यह त्वचा पर चिपके रहकर घाव बनाते हैं जिससे द्वितीयक जीवाणु संक्रमण भी हो सकता है।

परजीवी के प्रकार

1. अंतः परजीवी (EndoParasite) :- ये परजीवी पोषक के शरीर के अंदर रहकर उनसे भोजन प्राप्त करते हैं, जैसे-एस्केरिस, टेपवर्म आदि ।


2.बाहय परजीवी (Ectoparasite) :-इस प्रकार के परजीवी पोषक के शरीर के बाहर रहकर उनसे भोजन प्राप्त करते हैं, जैसे-जूं, खटमल आदि।

बाह्य परजीवी से प्राय: सभी प्रकार तथा उम्र के पशु प्रभावित होते हैं परंतु विशेष रूप से यह गोवंश पशुओं में ज्यादा होते हैं इसके अतिरिक्त चिंचड़ भेड़, बकरी, सूअर, कुत्ता, बिल्ली आदि में भी पाए जाते हैं । भैंस में चिंचड़ कम मिलते हैं परंतु इन में जूं अत्यधिक मात्रा में मिलती हैं चिंचड़ प्राय गर्मी एवं वर्षा ऋतु में अधिक होते हैं क्योंकि उस समय चिंचड़ के प्रजनन के लिए उचित तापमान व नमी वातावरण में उपलब्ध होती है जिससे चिंचड़ अपनी संख्या बढ़ा लेते हैं

चिंचड़ शरीर के किसी भी भाग पर हो सकते है चीचड़ पशुओं में प्राय घुमंतू पशुओं व चारागाह से आते है इसके अलावा यह पशुशाला की दीवारों व फर्श आदि की दरारों व छिद्रों में छिपे रहते हैं और जैसे ही मौका मिलता है वैसे ही पशु के शरीर पर आ जाते हैं और पशु का खून चूसते हैं और उन्हे कमजोर कर देते है जिससे पशुओं के उत्पादन क्षमता पर भी असर पड़ता है।
पशु बीमार हो जाते हैं विषाणु के अलावा चिंचड कई प्रकार के प्रोटोजोआ को भी एक पशु से दूसरे पशु तक ले जाते हैं जिसमें थाइलेरिया, बेबेसीया, एनाप्लाजमा प्रमुख बीमारियां हैं इन बीमारियों से पशुओं की काफी संख्या में मृत्यु होती है


जुंओ के प्रभाव

चींचड़ की तरह की जुएं भी सभी प्रकार एवं सभी आयु के पशुओं को प्रभावित करती है परंतु यह गोवंश पशुओं में कम तथा भैसों में अधिक मात्रा में होती है इसके अतिरिक्त जुएं भेड़, बकरी, कुत्ता, बिल्ली, मुर्गी में भी पाई जाती है जो सर्दी ऋतु में बहुत अधिक संख्या में होती है इसका मुख्य कारण सर्दी में पशुओं के शरीर पर घने व लंबे बालों का होना पशुओं का अधिक नजदीक से एक दूसरे के संपर्क में रहना तथा शारीरिक शक्ति का कम हो जाना माना जाता है ।

पशुओं में मुख्य रूप से दोतरह की जुएं पाई जाती है जिनमें एक पशु की त्वचा से उतक द्रव्य चुसती है तथा दूसरी पशु की त्वचा से बाहरी सतह पर एपिथीलियम कोशिकाओं को काटकर खाती है दोनों ही प्रकार की जूओ का पशुओं पर मुख्य असर लगातार खुजली व बेचौनी के रूप में होता है इस वजह से पशु ना ही अच्छी तरह से खाना खाता है और ना ही सो पाता है तथा पशु लगातार खुजला- खुजला कर अपने आप को जख्मी कर लेता है इन सब की वजह से मुर्गियों में अंडा तथा गाय भैंस में दूध उत्पादन बहुत कम हो जाता है

चिंचड तथा जूंओ से बचावके उपाय

बाहरी परजीवीओं को पूरी तरह से नष्ट करने के लिए पशुपालकों को पशु चिकित्सक के निर्देशो अनुसार दवा का उपयोग करना चाहिए

छिड़काव विधि

यदि पशुओं की संख्या कम है तो दवा को हाथ या पंप से छिड़काव करना चाहिए तथा पशुशाला में भी दवा का उपयोग करना चाहिए।

पोछा विधि

इस विधि में दवा को कपड़े में लगाकर पोछे के रूप में मुंह, सिर, तथा नाक से बचाते हुए संपूर्ण शरीर पर लगा देते हैं तथा एक घंटे पश्चात पशु को नहला देते हैं।

डूबकी विधि

जब पशुओं की संख्या बहुत अधिक हो तो इस विधि को अपनाना चाहिए इसके लिए एक पानी टैंक जिसकी गहराई आवश्यकतानुसार चौड़ाई 6 फीट और लंबाई 15 फीट होनी चाहिए दवा का घोल बनाकर ईस टैंक में भर दिया जाता है और पशुओं को एक-एक करके इसमें डुबोकर बाहर निकाला जाता है डुबकी विधि में पशुपालकों को कुछ सावधानियां रखनी पड़ती है जो इस प्रकार हैं-

डुबाने से पहले पशु के बड़े बाल काट देना चाहिए, गर्भीत पशु को नहीं डुबाना चाहिए,पशु को पूरी रात आराम देना चाहिए एवम पशु के शरीर में घाव हो तो डूबाना नहीं चाहिए, जिस दिन अच्छी धूप निकली न हो तभी यह विधि अपनानी चाहिए, पशु का सिर , नाक व मुंह नहीं डुबाना चाहिए इसके अतिरिक्त पशुपालकों को अपना भी बचाव रखना चाहिए।

पशुपालक को यह जरुर ध्यान रखना चाहिए कि वह स्वयं का बचाव करें और जिस दिन पशुशाला में दवा का छिड़काव किया जाए तब से एक-दो दिन तक पशु को उस  घर में नहीं बांधना चाहिए यदि पशुपालक इन उपायों को अपनाएंगे तो वह निश्चित रूप से ही पशुधन में चिंचड़ और जूओं परजीवी जन्तु से मुक्त और स्वस्थ पशु रख पायेगें।

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