Medical Mike Desk : ऑटिज्म डिसऑर्डर एक प्रकार की मानसिक बीमारी है। ये एक ऐसी बीमारी है जिससे सर्वाधिक रूप से बच्चे प्रभावित होते हैं। ये बीमारी पीड़ित बच्चे के व्यवहार पर असर डालती है। ऑटिज्म के लक्षण बच्चों में बचपन से ही दिखाई देने लगते हैं। ऐसे में इस बीमारी का समय रहते इलाज कराना जरूरी है नहीं तो इससे मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ सकता है। एक्सपर्ट बताते हैं कि इस बीमारी से पीड़ित बच्चों में होने वाली परेशानी एक जैसी नजर नहीं आती है।
ऑटिज़्म के प्रकार
ऑटिज्म एक तरह का न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है। यह एक ग्रोथ संबंधी बीमारी है जिससे पीड़ित बच्चे को बातचीत करने में, पढ़ने-लिखने में और लोगों के बीच मेलजोल बनाने में परेशानी होती हैं। ऑटिज़्म एक ऐसी स्थिति है जिससे पीड़ित बच्चे का दिमाग अन्य लोगों के दिमाग की तुलना में अलग तरीके से काम करता है।
अस्पेर्गेर सिंड्रोम
इस बारे में एक्सपर्ट बताते हैं कि अस्पेर्गेर सिंड्रोम को ऑटिस्टिक डिसऑडर का सबसे हल्का रूप माना जाता है। आप को बता दें कि इस सिंड्रोम से पीड़ित बच्चे या व्यक्ति कभी कभार अपने व्यवहार से भले ही अजीब लग सकते हैं लेकिन, कुछ खास विषयों में इनकी रूचि बहुत अधिक हो सकती है। हालांकि इन लोगों में मानसिक या सामाजिक व्यवहार से जुड़ी कोई समस्या नहीं होती है।
परवेसिव डेवलपमेंट डिसऑर्डर
आमतौर पर इसे ऑटिज़्म का प्रकार नहीं माना जाता है। कुछ विशेष स्थितियों में ही लोगों को इस डिसॉर्डर से पीड़ित माना जाता है। इसका कारण यह है कि यह बहुत ही सामान्य प्रकार का ऑटिज्म है, जिसमें ऑटिज्म के लक्षण बहुत ही हल्के होते हैं। अगर इससे कोई भी व्यक्ति या बच्चा पीड़ित है तो वह लोगों के बीच मिलने-जुलने और बातचीत करने से कतराता है।
ऑटिस्टिक डिसऑर्डर या क्लासिक ऑटिज्म
क्लासिक ऑटिज्म से पीड़ित जो बच्चे या व्यक्ति होते हैं उन्हें सामाजिक व्यवहार में और अन्य लोगों से बातचीत करने में मुश्किलें होती हैं। इसके साथ आप देखेंगे कि ये ऐसे लोग या बच्चे हमेशा अलग व्यवहार करेंगे, जो सामान्य बच्चों या लोगों में देखने को नहीं मिलता है।
रैट्स सिंड्रोम
रैट्स सिंड्रोम से प्रभावित लोगों के जेंडर को अगर देखा जाए तो आप पाएंगे कि ये लड़कियों में ज्यादा देखने को मिलता है। इस तरह के ऑटिज्म से प्रभावित लोगों के दिमाग का आकार छोटा होता है, उन्हें कई तहर की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। उनका शारिरिक विकास भी प्रभावित होता है। इससे पीड़ित व्यक्ति को चलने में परेशानी आती है और उनके हाथों के टेढ़े होने, सांस लेने में दिक्कत और मिर्गी की परेशानी भी होती है।
ऑटिज्म की पहचान
इस बीमारी के लक्षण आमतौर पर 12-18 महीनों की आयु में दिखते हैं जो सामान्यर से लेकर गम्भीर हो सकते हैं। ये समस्याएं पूरे जीवनकाल तक रह सकती हैं। ऑटिज्म को किसी एक मेडिकल टेस्ट से पहचाना नहीं जा सकता है। हालांकि फ्रेजाइल एक्स सिंड्रोम जैसे टेस्ट से ऑटिज्म की तरह के लक्षणों का पता लगाया जा सकता है।
Note :- इस लेख में उल्लेखित सलाह और सुझाव सिर्फ सामान्य सूचना के उद्देश्य के लिए हैं और इन्हें पेशेवर चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। कोई भी सवाल या परेशानी हो तो हमेशा अपने डॉक्टर से सलाह लें।