इन वजहों से नॉर्मल नहीं सिजेरियन होती है डिलीवरी !

Medical Mike Desk : डिलीवरी नॉर्मल होगी या सिजेरियन पूरे नौ महीने तक गर्भवती महिला के घर में इसी पर चर्चा होती है। लेकिन अफसोस मुट्ठी भर महिलाओं को ही प्राकृतिक रूप से बच्चे के जन्म देने का सौभाग्य मिल पाता है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के मुताबिक, सरकारी अस्पतालों में जहां 10 फीसदी सिजेरियन डिलीवरी होती है, वहीं प्राइवेट हॉस्पिटल्स में 31.1 फीसदी डिलीवरी सिजेरियन होती हैं। ऐसे में प्राइवेट अस्पतालों में तीन गुना ज्यादा सिजेरियन डिलीवरी होती है।

क्या कहते हैं आंकड़े

देश में 2.7 करोड़ बच्चे हर साल पैदा होते हैं। इन बच्चों में 17.2 फीसदी बच्चे सिजेरियन से पैदा होते हैं। इस तरह हर साल 46.44 लाख बच्चे सिजेरियन से पैदा होते हैं। वहीं अगर बात निजी अस्पताल में सिजेरियन डिलीवरी के औसत खर्चे की करें तो वो 50 हजार होता है। सेहत के नजरिए से नॉर्मल और सिजेरियन डिलीवरी में क्या फर्क होता है। डॉक्टर ने बताया कि सिजेरियन डिलीवरी के दौरान ब्लीडिंग हो सकती है। आपको इंफेक्शन हो सकता है। इसमें कोई शक नहीं कि सिजेरियन डिलीवरी के कई कॉम्पलीकेशंस होते हैं। यहां तक की एनेस्थेसिया कॉम्पलीकेशंस हो सकते हैं।

क्या कहते हैं डॉक्टर

डॉक्टर का कहना है कि फीजिकल वर्क कम हो गया है। महिलाएं तीन से चार घंटे तक लैपटॉप में बैठी रहती हैं। वजन बढ़ जाता है। महिलाएं हेल्दीव फूड्स नहीं खाती। महिलाओं की उम्र। इन सभी के कारण उनकी बॉडी में फ्लैक्सिबिलिटी भी कम हो जाती है। उनका मोमेंट बहुत अधिक नहीं होता। बेबी का हेड ठीक से डवलप नहीं हो पाता जिससे बच्चे की डिलीवरी आसानी से नहीं हो पाती। आंकड़ों में पाया गया कि जिन राज्यों में साक्षरता दर ज्यादा है वहां पर सिजेरियन के जरिए ज्यादा बच्चे पैदा किए जा रहे हैं। डॉक्टर का कहना है कि कोई परिवार नहीं चाहता कि बच्चे या मां को कोई तकलीफ हो। जैसे ही लगता है कि मां या बच्चे को कोई तकलीफ हो रही है तो सिजेरियन की सलाह दी जाती है। अब फैमिली भी सिजेरियन के लिए आसानी से तैयार हो जाती है।

WHO के आंकड़ें

विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक, 2010 तक देश में सिर्फ 8.5 फीसदी सिजेरियन डिलीवरी होती थीं। इसमें सरकारी और निजी अस्पताल शामिल हैं। जो 2015-16 में बढ़कर 17.2 फीसदी हो गया है। जबकि इसे 10 से 15 फीसदी के बीच ही होना चाहिए। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर पांच-छह सालों में ऐसा क्या हो गया जिसने सिजेरियन डिलीवरी के मामलों को बढ़ा दिया। डॉक्टर कहना है कि लोगों में सब्र नहीं है उन्हें जल्दी रिजल्ट चाहिए। कुछ लोग मां को तड़पता हुआ नहीं देखते और जल्दी डिलीवरी करने के लिए सिजेरियन की रिक्वेस्ट करते हैं। जबकि कुछ लोगों को एक खास डेट पर ही बच्चा चाहिए होता है। इन कारणों से भी सिजेरियन डिलीवरी बढ़ रही है।

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ऑपरेशन से हुए बच्चों को होती हैं ये बीमारियां

कई स्टडी में भी ये बात साबित हो चुकी है कि नॉर्मल डिलीवरी से पैदा हुए बच्चे ज्यादा सेहतमंद होते हैं। सिजेरियन डिलीवरी से पैदा हुए बच्चों में मोटापे, एलर्जी और टाइप वन डायबिटीज होने का खतरा ज्यादा होता है। डॉक्टर का कहना है कि पैसों के लिए सिजेरियन डिलीवरी रोकने के लिए दोनों तरह की डिलीवरी का खर्चा एक समान या इनके बीच बहुत कम अंतर कर दिया जाएं तो ये बेहद फायदेमंद हो सकता है।

Note :- इस लेख में उल्लेखित सलाह और सुझाव सिर्फ सामान्य सूचना के उद्देश्य के लिए हैं और इन्हें पेशेवर चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। कोई भी सवाल या परेशानी हो तो हमेशा अपने डॉक्टर से सलाह लें।

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