‘Covid के बाद भारतीयों में बढ़ी नेगेटिविटी, 35 प्रतिशत लोग खुश नहीं’

Medical Mike Desk : कोरोना महामारी ने दुनियाभर के लोगों की मुश्किलें बढ़ाने का काम किया है। इस वायरस ने उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बुरी तरह से प्रभावित किया है। एक अध्ययन बताता है कि भारत के लोगों में कोरोना महामारी के बाद से आक्रोश, तनाव, चिंता और दुख जैसे नकारात्मकता के भाव काफी बढ़े हैं।

रिपोर्ट 2023 के मुताबिक, भारतीय लोगों में नेगेटिविटी और नाखुशी की भावना बढ़ गई है। इस स्टडी में शामिल 35 प्रतिशत लोगों ने यह माना कि वे इन सभी नकारात्मक भावनाओं का सामना कर रहे हैं। पिछले साल हुए शोध की बात करें तो 2022 में 33 प्रतिशत लोगों ने ऐसी नकारात्मक भावना जाहिर की थी। मतलब इस साल इस समस्या से जूझ रहे लोगों का प्रतिशत बढ़ गया है।

इस मामले में शीर्ष पर अरुणाचल प्रदेश

नेगेटिव एटीट्यूड रखने के मामले में जो राज्य टॉप पर है, वो अरुणाचल प्रदेश है। अरुणाचल प्रदेश में हुए अध्ययन में शामिल लगभग 60 प्रतिशत लोगों ने कबूला कि वे खुश नहीं हैं। इस मामले में दूसरे नंबर पर मध्य प्रदेश रहा, जहां 58 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे नाखुश हैं। जबकि तीसरे स्थान पर दो राज्य गुजरात और उत्तर प्रदेश रहें, जहां 51-51 प्रतिशत लोगों ने नेगेटिव और नाखुश रहने की बात कही।

इस स्टडी के मुताबिक, पॉजिटिव एटीट्यूड रखने वाले भारतीयों की संख्या में भी तेजी से गिरावट देखी गई है। एक साल पहले जहां पॉजिटिव एटीट्यूड रखने वाले लोगों का प्रतिशत 70 था, वहीं इस साल यह आंकड़ा घटकर 67 प्रतिशत रह गया है। ‘लाइफ असेस्मेंट स्कोर’ जिसे बेहतरी के तौर पर लिया जाता है, इसमें भी गिरावट देखी गई है। साल 2023 में यह आंकड़ा 10 में से 6.08 रहा। जबकि पिछले साल यानी 2022 में यह आंकड़ा 6.84 दर्ज किया गया था।

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नाखुश रहने के कई कारण

सर्वे के मुताबिक, भारतीय लोगों में कोरोना महामारी के बाद खुश न रहने के कई कारण हैं, जिनमें सबसे प्रमुख कारण फाइनेंशियल प्रॉब्लम, वर्कप्लेस पर बढ़ता प्रेशर, सोशल स्टेटस, अकेलापान और लोगों से कटाव है। देश के 28 राज्यों और आठ केंद्र शासित प्रदेश के 14000 लोगों पर किए गए शोध के मुताबिक, छात्रों में नेगेटिविटी का लेवल सबसे ज्यादा बढ़ा है और वो इस पूरे दौर में सबसे ज्यादा प्रभावित रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि 18 साल से कम उम्र के और 60 साल से ज्यादा उम्र के लोगों में आक्रोश और दुख का स्तर सबसे ज्यादा देखा गया। इस अध्ययन में शामिल इन दोनों एजग्रुप के 10 में से पांच ने खुद को नाखुश और दुखी बताया। जबकि पिछले साल ऐसा महसूस करने वाले 10 में सिर्फ दो लोग थे।

Note :- इस लेख में उल्लेखित सलाह और सुझाव सिर्फ सामान्य सूचना के उद्देश्य के लिए हैं और इन्हें पेशेवर चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। कोई भी सवाल या परेशानी हो तो हमेशा अपने डॉक्टर से सलाह लें।

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