Medical Mike Desk : भारत में मलेरिया के सबसे अधिक मामले ओडिशा से सामने आते हैं। शिलांग और त्रिपुरा के आदिवासी बेल्ट में विवैक्स मलेरिया के मामले दर्ज किए गए हैं। JNU के मॉलिक्यूलर मेडिसिन स्पेशल सेंटर के वैज्ञानिकों ने पाया है कि हेपेटाइटिस सी को रोकने वाली दवा एलीस्पोरिविर को मलेरिया के दवा प्रतिरोधी स्ट्रेन के इलाज में इस्तेमाल किया जा सकता है। एक शोध में आर्टेमिसिनिन-आधारित कॉम्बिनेशन थेरेपी के खिलाफ मलेरिया के स्ट्रेन में बढ़ी प्रतिरोधक क्षमता का खुलासा किया था। जो कि इस घातक बीमारी से लड़ने के लिए चल रहे वैश्विक प्रयासों के लिए एक बड़ा खतरा माना जा रहा है।
वैज्ञानिकों के अनुसार, प्लाज्मोडियम एसपी पी फाल्सीपेरम की वजह से होने वाला मलेरिया अभी भी ‘विनाशकारी संक्रामक रोग’ बना है। जो मनुष्यों को संक्रमित करने वाली प्लास्मोडियम की सभी पांच प्रजातियों में से सबसे घातक मानी जाती है। मलेरिया को काबू में करने और रोकथाम में एंटीमलेरिया दवाइयों के प्रति बढ़ती प्रतिरोधक क्षमता एक बड़ी बाधा है। इसलिए बीमारी से निपटने के लिए नई रणनीतियों की जरूरत की तरफ इशारा करती है।
दरअसल, साइक्लोस्पोरिन एक गैर-प्रतिरक्षादमनकारी एनालॉग है और एंटीवायरल गुणों के साथ साइक्लोफिलिन्स की गतिविधियों को रोकता है। अध्ययन में कहा गया है कि एलीस्पोरिविर को मुंह के रास्ते लेने पर यह मानव शरीर को निशाना बनाने वाले साइक्लोफिलिन पर निशाना साधता है। जिससे हेपेटोसाइट्स में हेपेटाइटिस सी वायरस की ग्रोथ कम होती है। ICMR के अनुसार भारत में मलेरिया के सबसे अधिक मामले ओडिशा से सामने आते हैं। शिलांग और त्रिपुरा के आदिवासी बेल्ट में विवैक्स मलेरिया के मामले दर्ज किए गए हैं। ये मलेरिया का वो रूप होता है जिसमें इंफेक्शन तो गंभीर होता है, लेकिन यह जानलेवा नहीं होता। हालांकि अगर समय पर इसका इलाज न किया जाए तो यह बड़ी स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है। रिपोर्ट के अनुसार, हर साल लगभग 290 मिलियन लोग मलेरिया से संक्रमित होते हैं और 400,000 से अधिक लोग इस बीमारी की वजह से अपनी जान गंवा देते हैं।
वैज्ञानिकों का दावा : ड्रग रिपॉजशनिंग की मदद से मलेरिया होगा खत्म
वैज्ञानिकों का मानना है कि लंबे समय से चली आ रही मलेरिया की समस्या का समाधान ड्रग रिपोजिशनिंग हो सकती है। 2015 में मलेशिया में आयोजित पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक घोषणा की थी कि 2030 तक भारत मलेरिया मुक्त हो जाएगा। उनका कहना है कि मलेरिया को खत्म करने की लड़ाई में इस नई स्टडी के नतीजे मदद करेंगे। प्रभावशाली मलेरिया-रोधी दवाओं की खोज के लिए दवा प्रतिरोध विकास के तंत्र को समझना बेहद महत्वपूर्ण है। एलिस्पोरिविर ड्रग लेने पर यह प्लाज्मोडियम साइक्लोफिलिन-19 बी नामक एक परजीवी प्रोटीन से जुड़ती है।
एलिस्पोरिविर को मलेरिया उपचार में किया जा सकता है इस्तेमाल
वर्तमान मलेरिया उपचार के बारे में कहा गया कि आर्टेमिसिनिन के साथ संयोजन के लिए लंबे प्लाज्मा अर्ध-जीवन वाली नई साझेदार दवाओं की आवश्यकता है। वहीं एलिसपोरिविर का लगभग 90 घंटे का अर्ध जीवन आर्टीमिसिनिन के साथ संयोजन में आर्टेमिसिनिन-प्रतिरोधी परजीवी के खिलाफ प्रभावी पाया गया है। इस शोध के नतीजे बताते हैं कि एलिस्पोरिविर को मलेरिया के उपचार के लिए एक संभावित दवा के तौर पर लिया जा सकता है। इसे एसीटी के लिए अकेले या फिर अन्य दवा के साथ ले सकते हैं।
मलेरिया के लिए उपलब्ध अन्य उपचार और ये विफल क्यों हुए
मलेरिया का इलाज मुख्य रूप से आर्टेमिसिनिन और उससे बनी दवाओं पर निर्भर करता है। आर्टेमिसिनिन-आधारित संयोजन चिकित्सा को मलेरिया के लिए प्रथम पंक्ति का उपचार माना जाता है। ऐसे में आवश्यकता दवा प्रतिरोधी परजीवियों के प्रसार को रोकने के लिए नई प्रभावी दवाओं को खोजने और उपचार के लिए रणनीतियों को बनाने की है। मलेरिया उन्मूलन की लड़ाई में दवाओं के प्रति इम्युनिटी बना चुके पैरासाइट्स एक बड़ी बाधा हैं। इनके प्रसार को रोकने के लिए ड्रग रिपॉजिशनिंग कारगर है जिसके लिए हमें और प्रयास करने चाहिए।